शनिवार, 19 सितंबर 2009

असली प्रशंसा

जेना कोनो बरियाती गेला स' शारीरिक असुविधा छोडि एक्केटा वस्तु भेटैत छैक आ ओ थीक लोक, अपन लोक एक ठाम, तहिना साहित्यिक गोष्ठीमे गेला संता सैह फैदा होइ छै।काल्हि स्व।हरिमोहनझाजीक जयंती आयोजन मे जा सैह लागल।आब कहां क्यो किछु एहन कहैत अछि जे मूडी घुमा क' देखियै आ कान पाथि क' सुनियै।सब ठाँ अहाँके वैह भेटत जेकरा अहां चर्वित चर्वण कहि क' अंठा दियै' ।काल्हि अहिना एक टा उदयीमान लेखक आ वर्तमान 'परफेसर' एना बोर केलनि...अहि स' नीक त' हरिमोहनबाबू पर विद्यार्थी स लिखैत अछि।की विलक्षण जे हमरो कैक परीक्षामे हरिमोहनबाबूक रचना पर लिख' पडल अछि। की आश्चर्य जे ओ हमरो पढेने छला आ हमर पितृव्य(श्री दिव्यानन्द सिंह) के सेहो।अपन बात कहैत हम सत्ते कहलियै जे एखनो जँ मोन उबियाइत अछि, की करी की नहि करी...की पढी...की नहि पढी...? त' हम हरिमोहनबाबूक कोनो किताब पढ' लगै छी। कोनो लेखकक, हमरा जनैत सब स' पैघ प्रशंसा यैह छियै...ई जँ क्यो हमरा कहैत त' हम फूलि क' कुप्पा भेल रहितौं। आमीन।

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