रविवार, 28 अगस्त 2011

काज करू,तखन बाजू !


की लेब, गप्प? लिय'लप्प के लप्प । मुदा हमरो लगै छल ई सब गप्पे छियै । जखन व्यक्तिगत स्वार्थ टकराइ छै त' सर्व प्रथम सिद्धांत पानि भरै लए चल जाति छै। अन्नाक अनशन,जन सम्रर्थन,फेर ओकर समाप्ति सब किछु हमरा गप्प लगैये । जनलोक पाल मे एन.जी.ओ.के कियैक ने राखल गेलै ? की हेतै ज' जनलोक पाले मे भ्रष्टाचार पैसि जाइ ? ओकरा पर के नजरि रखतै ? अन्ना कि केजरीवाल कि शांति भूषण कि किरण बेदी चुनाव नंइ लड्ती...जे.पी. सेहो चुनाव नंइ लडला,कोनो जबाबदेही नंइ लेलनि । ई त' आरो भयावह । अरे अहां उत्तरदायित्व ल'क' काज करियौ आ लोकके देखबियौ जे अहां कोना काजरक कोठली मे रहियो क'बेदाग छी । तखन ने लोक बूझत । आ सोझे कुचेष्टा कारबा मे की
छै? क्यो क' सकैये । काज क' क' देखबियौ,तखन ने बूझब अन्ना । ई देश अदौ स' भ्रष्टाचार मे लिप्त छै,एकरा ने बचबियौ । दोसर "दूसरी आज़ादी"...बहुत भेलै ।

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

एक्शन री प्ले.

हमरा जँ एखन क्यो कहे जे अहां के हम तीस वर्षक बना दैत छी,त'एक त' हम हठे
तैयारे ने हेबै । जँ' भैयो गेलंहु त'जीवन के एते सीरियसली नंइ लेबै जत्ते सीरियसली हम एकरा लेने रहियै । हमरा लगैत अछि जे सब किछु अपन समय पर खट-खट होइत रहतै छैक, अहांक मनोवृत्ति तेहने भ' जायत, अहां स्वत: ओही दिशा मे बढबै, वैह करबै जाहि स'कि नियत काज हुए। अहां चाहबो ज' करबै ज्र नंइ करब---त'होनी हाथ पकडि क'करा लेत। तैं हमर बादक दोसर की तेसर पीढी के ई बूझि लेबाक चाही जे काज त'अवश्य करी मुदा अइ चिंते नंइ बीतल जाइ जे ई काज मे सफलता भेटत कि नंइ ? नंइ भेटत त' की करब ? एक टा रास्ता जँ' बंद होइ छै त' ईश्वर कि भाग्य, दस टा आर दरवाजा खोलि दैत छथिन । अहां छ्टपटाऊ कि,भने काहि काटू---किछु करू,होइ बला जे छै से हेबे करतै । अहां मात्र अपन अंतर्मनक बात के ध्यान स'सुनियौ ने !आधा-आधी ओझरी ओहिना सोझरा जायत । हमरा डाक्टर बनबाक बड मोन रहय, मुदा होनी रहै हमरा रेडियो मे काज करबै बला कि लेखक बनेबाक हम आइ.एस.सी.केलंहु,तेन किम? हमरा "जीवछ भाई" बन' पडल,बा-जबर्दस्ती हमरा लिख' पडल। किताब-दर-किताब छपल । हमरा स' क्यो ने पुछलक--" की यौ ? अपने लेखक बनबै ?" तैं हमर रिक्वेस्ट ! जीवन के अपन गतियें चल'दियौ,अहांके नंइ बूझल अछि जे अहां चाहियो के एकर दशा आ दिशा नंइ बदलि सकै छी ।

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

म्नुक्ख होइये चिडै.

अपन व्यक्तिगत दुख के जग-जाहिर करब बेकार ।...सुनि अठिलैहें लोगसब के अतिरिक्त किछु नंइ।
हमरा लगैत अछि जे साहित्यिक रूप स'जखन क्यो चर्चा मे नंइ आबि पबैत अछि तखन ओ
लेखक अपना स' श्रेष्ठ के गारि फझ्झति द'क' अपना के पैघ बुझैत अछि। तै मे ज' हुनका कत्तौ छपै-छपबै के
सुविधा होनि,कोनो धज्जी सनक मैगजिन होनि तखन त'हुनका जे मोन हेतनि से लिखता। अहिना छथि संपादक वरेण्य शरदेंदु शेख चौधरीजी । हुनकर मोनेजे हमरा जहिया स'अकादमी भेटल अछि तहिया स' हमर लिखनाइ बंद भगेल अछि । जखन
कि तकर बाद हमर दशाधिक कथा प्रकाशित भेल अछि।मुदा से हुनका नंइ सुझलनि। कोना
सुझतनि ? अहां आंखि पर पीरा चश्मा लगा क'देखबै त'दुनियां पांडु रोग स' पीडित बुझाइये पड्त। तहिना एक टा साहित्यिक रंगदार बिहरि स'बहरेला अछि अजित कुमार आज़ाद जी। लिखतथि-पढितथि त'से जथ-कथ,भरि
पटना घुमि-घुमि क'एकर बात ओकरा त'कोनो गुलछर्रा अनेरे उडबैत रहता,लोक के लडबैत,तरह-तरह के लांछन लगबैत समय गमेता।एखन फेस बुक पर ओ लिखै छथि जे हम, उषाकिरण जी आ भाई साहेब ( राजमोहन जी) मैथिली कथा के
हिंदी अनुवाद क' हिंदियो के लेखक सब मे अपन नाम करै लए चाहै छी। हम्रर मैथिली कथाक सब हिंदी अनुवाद मे"मैथिली कथा" शीर्षकेक संग छपल रहै छैक,से हुनका नंइ सुझै छनि । आंखि मे गेजड जं भ'जाय,त'कोना सुझत ? हमर एहन कथा "काल रात्रिश्च दारुणा" जुलाइ 2009 के वागर्थ पत्रिका मे छपल अछि, से
देखौत,किंबा हमर कोनो हिंदीक रचना देखा दौथ जाहि मे ई नंइ लिखल हुए जइमे मैथिलीक कथाक उल्लेख नंहि हुए त'मानि जेबनि ।बिना आधारक एहेनसब बात लिखब साहित्यिक रंगदारी नंइ त' आर की कहौतै?

शनिवार, 26 मार्च 2011

गते बहुतरे काले.....

बहुत दिन बीत गेलै, दिन के की ?बितबे लए छैक काल । जे अबाध गति स'चलल जा रहल छै।
सैह देख क' ने कविगण एकरा 'ओल्ड फादर टाइम,टाइम,टाइम !' लिखलखिन । हमर घर मे एक जनी एहनो छथि जे बिना पढ्ने-लिखने नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो.हाकिंस के मातु क' देलखिन । ओ सूर्यक जन्म दिन मनबैत छथि...जखन की सूर्यक निर्माण,की सूर्यक उत्ताप कहिया शुरू भेलै ? ई बडका-बडका पदार्थ विज्ञानीयों के पुछबनि त' गोंगियै लगता। मुदा हुनका बुझल छनि जे सूर्य देवता कहिया जनमला। हमर मुंह स' अनायासे निकलि गेल--वाह !

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

....डाला डूली घर करू....

राष्ट्र मंडल खेलक समापनक बाद ओहिना लागि रहल छै जेना बेटिक बियाह्क बाद लगै छै। ओहेने गप्पो सुरू भ' गेलैये । जेना---"बरियातीके एक टा मधुर नंहिये परसल गेलै...तेना ओलवा-दोलवा उठा दै जाइ छथिन
जे ककरो कोनो होश रहै छै ?" तहिना आरोप आ प्रत्यारोपक दौर चलि रहलैये । सत्तरि हजार करोड रुपया कोनो कम नंइ होइ
छै। एत्ते मे त' कैक टा कल्याणकारी योजना के कैल जा सकै छलै । राष्ट्र मंडल खेल क' क' बांहि पुजेला स' की भेटल ? कोन तमगा ? यैह जे हमरा लोकनि अंग्रेजक सबल ग़ुलाम छी ? एखनो गोरका मुंहबला बानर के बनर नकल करैमे हमरा लोकनि गौर्वान्वित अनुभव करिते छी ! ई हमरा लोकनि के जीन्स मे मिझ्झड भ' गेल अछि । अंग्रेजक कि पश्चिमी देश जेना
करत, हमरो लोकनि ठीक ओहिना करब । जखन ग़ुलाम रही तखनि त'अंग्रेजे जेकां मुंह टेढ क' क' हिंदी नामक उच्चारणो करैत रही । फलस्वरूप, राम भ' गेला रामा---आ कृष्ण भ' गेला कृष्णा । अंग्रेज गेल। तकरो साठि साल भेलै । एत्ते दिन मे त' सब चेत जाति अछि---हमरा सब कियै अंग्रेजक दाढी कुडियेबा लेल एना धत-धत करैत रहै छी ?

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

विजयादशमी आ हमर कामना !

आइ अपन ब्लौग पढैबला जे दू-चारि गोटे छथि तिनका प्रणाम, आशीर्वाद, नमस्कार आ मंगल
कामना !
आजुक दिन बाबाक ई पांती " यश-अपयश हो,लाभ-हानि हो सुख हो अथवा शोक,
सभ सँ' पहिने मोन पड इछ, अपने भूमिक लोक ॥"आइ ई दू पांती बेर-बेर मोन पडि रहल अछि। ओना मोन त' ओहो पडि रहला अछि । रौद मे खक्सियाह भेल मुंहक त्वचा पर दू टा भाला कि दू टा ज्वाला सन दिपदिपाइत आंखि देने अहांक अंतर्मन तक के वेध दै बला किरण जी ! कहलखिन---"किंतु मैथिली का तो केवल मैं ही एक मात्र आधार : मेरे बल पर ही अब तक है इसमे जीवन का संचार ।" ओ त' असकरो भारी पडलखिन....हमरा सब त' छी दस समांग । आ सुकुर अछि जे आब हमरा सबहक संग टेक्नोलौजी अछि, जे बड पावरफुल अछि । तैं " कामना--शुभ कामना ! "