शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

एक्शन री प्ले.

हमरा जँ एखन क्यो कहे जे अहां के हम तीस वर्षक बना दैत छी,त'एक त' हम हठे
तैयारे ने हेबै । जँ' भैयो गेलंहु त'जीवन के एते सीरियसली नंइ लेबै जत्ते सीरियसली हम एकरा लेने रहियै । हमरा लगैत अछि जे सब किछु अपन समय पर खट-खट होइत रहतै छैक, अहांक मनोवृत्ति तेहने भ' जायत, अहां स्वत: ओही दिशा मे बढबै, वैह करबै जाहि स'कि नियत काज हुए। अहां चाहबो ज' करबै ज्र नंइ करब---त'होनी हाथ पकडि क'करा लेत। तैं हमर बादक दोसर की तेसर पीढी के ई बूझि लेबाक चाही जे काज त'अवश्य करी मुदा अइ चिंते नंइ बीतल जाइ जे ई काज मे सफलता भेटत कि नंइ ? नंइ भेटत त' की करब ? एक टा रास्ता जँ' बंद होइ छै त' ईश्वर कि भाग्य, दस टा आर दरवाजा खोलि दैत छथिन । अहां छ्टपटाऊ कि,भने काहि काटू---किछु करू,होइ बला जे छै से हेबे करतै । अहां मात्र अपन अंतर्मनक बात के ध्यान स'सुनियौ ने !आधा-आधी ओझरी ओहिना सोझरा जायत । हमरा डाक्टर बनबाक बड मोन रहय, मुदा होनी रहै हमरा रेडियो मे काज करबै बला कि लेखक बनेबाक हम आइ.एस.सी.केलंहु,तेन किम? हमरा "जीवछ भाई" बन' पडल,बा-जबर्दस्ती हमरा लिख' पडल। किताब-दर-किताब छपल । हमरा स' क्यो ने पुछलक--" की यौ ? अपने लेखक बनबै ?" तैं हमर रिक्वेस्ट ! जीवन के अपन गतियें चल'दियौ,अहांके नंइ बूझल अछि जे अहां चाहियो के एकर दशा आ दिशा नंइ बदलि सकै छी ।

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

म्नुक्ख होइये चिडै.

अपन व्यक्तिगत दुख के जग-जाहिर करब बेकार ।...सुनि अठिलैहें लोगसब के अतिरिक्त किछु नंइ।
हमरा लगैत अछि जे साहित्यिक रूप स'जखन क्यो चर्चा मे नंइ आबि पबैत अछि तखन ओ
लेखक अपना स' श्रेष्ठ के गारि फझ्झति द'क' अपना के पैघ बुझैत अछि। तै मे ज' हुनका कत्तौ छपै-छपबै के
सुविधा होनि,कोनो धज्जी सनक मैगजिन होनि तखन त'हुनका जे मोन हेतनि से लिखता। अहिना छथि संपादक वरेण्य शरदेंदु शेख चौधरीजी । हुनकर मोनेजे हमरा जहिया स'अकादमी भेटल अछि तहिया स' हमर लिखनाइ बंद भगेल अछि । जखन
कि तकर बाद हमर दशाधिक कथा प्रकाशित भेल अछि।मुदा से हुनका नंइ सुझलनि। कोना
सुझतनि ? अहां आंखि पर पीरा चश्मा लगा क'देखबै त'दुनियां पांडु रोग स' पीडित बुझाइये पड्त। तहिना एक टा साहित्यिक रंगदार बिहरि स'बहरेला अछि अजित कुमार आज़ाद जी। लिखतथि-पढितथि त'से जथ-कथ,भरि
पटना घुमि-घुमि क'एकर बात ओकरा त'कोनो गुलछर्रा अनेरे उडबैत रहता,लोक के लडबैत,तरह-तरह के लांछन लगबैत समय गमेता।एखन फेस बुक पर ओ लिखै छथि जे हम, उषाकिरण जी आ भाई साहेब ( राजमोहन जी) मैथिली कथा के
हिंदी अनुवाद क' हिंदियो के लेखक सब मे अपन नाम करै लए चाहै छी। हम्रर मैथिली कथाक सब हिंदी अनुवाद मे"मैथिली कथा" शीर्षकेक संग छपल रहै छैक,से हुनका नंइ सुझै छनि । आंखि मे गेजड जं भ'जाय,त'कोना सुझत ? हमर एहन कथा "काल रात्रिश्च दारुणा" जुलाइ 2009 के वागर्थ पत्रिका मे छपल अछि, से
देखौत,किंबा हमर कोनो हिंदीक रचना देखा दौथ जाहि मे ई नंइ लिखल हुए जइमे मैथिलीक कथाक उल्लेख नंहि हुए त'मानि जेबनि ।बिना आधारक एहेनसब बात लिखब साहित्यिक रंगदारी नंइ त' आर की कहौतै?