बुधवार, 27 जनवरी 2010

रोजनामचा

जाड फक स' छोडि देलकै त' लागल जे अहू बेर कत्ते गोटा के ई जुऐल कनकनी ल' गेलै...माने जे एखनो कत्ते लोक भोजन_वस्त्र_आवास स' वंचित जे अकाल मृत्यु के प्राप्त करैत अछि। हमरा कखनो क' डर भ' अबैत अछि,लगैत अछि जे एक दिस अरब पतिक संख्या मे वृध्धि आ दोसर दिस बी.पी.एल. क टाल...ई कोन प्रगति आ डी.जी.पी.ग्रोथ भेल?
हाल मे एकटा टी.भी.प्रोग्राम मे डा. हेतुकर झा कहलखिन जे मैथिल की भारतीय समाजक कोनो भविष्य नहि छैक कारण जे मल्टीनैश्नलक मोताबिक लोक के जीवन यापन कर' पडतै, तैं आब अहि समाज के संस्कृति नंहि रहत। एवरीथिंग इज़ फिनिश्ड। हमरा किछु वर्ष पूर्व भारत आयल फ्रांसिसी दार्शनिक देरीदा मोन पडि अयला। जे अबिते उद्घोष केलनि जे आब साहित्य मरि गेल, उपन्यास लए कोनो विषय शेष नहि रहल, आब कवि की कहता, सब किछु कहल चल गेल अछि। एकर किछुए दिनुका बाद पं.गोविन्द झा जी के हरलनि ने फुरलनि कहल्खिन जे आब मैथिली भाषा नहि बचत। एकर किछुए दिनुका बाद बी।जे.पी. सरकार एकरा मान्यता द' बैसलै।

शनिवार, 23 जनवरी 2010

पुनः प्रयास

कोनो विद्वानक कथन मोन पडैत अछि, मनुक्ख अपना सुख लए जत्ते वस्तुक निर्माण केलक ओइ स' अधिकतर ओकरा दुःखे भेलैये, सुख कमे। हमर इंटरनेटो अहिना अछि। जहिया स' राजस्थान स' घुरलंहु
ई चारिम बेर ब्लौग लिखि रहल छी। सब बेर लाइन दगा दैत अछि, ब्लौग आधे पर रहि जाइत अछि। पता नहि, अहू बेर पोस्ट हैत कि नंहि। तैं सब के हेलो ! कहैलए ई पोस्टिंग़