रविवार, 22 नवंबर 2009

हमर विपरीत पद्धति 2

( पछिला पोस्टिंग़ क़ॆ बाद) ...हमर जायज शंका छलए जे एत्ते श्रम स' ई अनुवाद क' रहला अछि, त' पूछि लेबाक चाही जे एकरा छपतनि के, फेर एकरा पढतनि के? हुनका से सब नहि बुझल छनि। रिटायर क' क'बैसल छलंहु
कोनो काज नहि छल , भजार कहलनि जे बैसल छी, कियैक ने भागवतक मैथिली अनुवाद करै छी, मैथिली मे छैको नंइ। बस क' रहल छी। आब एकरा के छापत, के पढत(?) से जानथि महरानी(काली)! आब भजारक कहला पर पंडित जी रोज महीनो स' मेहनति क' रहल छथि से आर के क' सकैत अछि बिनु अखजी लोक के ? यैह तटस्थता, यैह निर्लिप्तता, यैह फलक आस बिनु केने कर्म रत रहबाक परंपरा हमरा सब (मैथिल) के आन लोक सब स' अलग करैत अछि, विशिष्ट , निविष्ट आ अनुकरणीय बनबैत रहल अछि। ई दुर्भाग्य जे हुनका मुइलाक बाद जे सासुर गेलंहु त' एक दुपहरिया पछवाक तोड पर वैह मोती सनक आखर मे कैल अनुवाद भरि आँगन उडियाइत देखलियै। तेन किम् ! बुढा त' अपन काज क' क' चल गेला, आब लोक ओकरा संगे जे करय !

शनिवार, 21 नवंबर 2009

हमर विपरीत पद्धति

ओना अखज लोक सब ठाँ, कहैक माने जे सब समाज मे भेट जायत, मुदा मैथिल एक त' एहन कोनो मोंछक लडाइ मे पडबे ने करत, आ जँ बाबू पडि ग़ॆल त' हठ्ठे छोडबो ने करत। अपन सासुरक गप्प कहै छी, ओइ ठाम कहाँअ दू गोटा मे गौंआ लागल रहनि। घरो एके टोल मे रहनि।एक गौंआ त' पढि -लिखि क' शास्त्रीय आचार्य तक पढि गेल रहथिन आ बहुते स्मार्ट सूरत गुजरात मे पढौनी क' क' चिक्कन पाइ कमाइत रहथि। दोसर गौंआ के दू_चारि बिगहा धनहर खेत बंटाइ पर लागल रहनि।पहिलुका जमाना रहै।खेत उपजै।बंटाइदार बैमानी नंहि करै। लोक उदार छलैक ओहि ठाँमक। खत्ता_खुत्ती, डबरा_डुबरी, पोखरिं_झाँखडिक कमी रहबे ने करै। बागमती मेबाढि अबै । बाढि मे मांछ अबै।दोसर गौंआ एकटा कडची मे बंसी बना भरि दिन मांछमारे। सांझ तक तीमन जोगरक भ' जाइ।घर जाय आ 'मांछ भात_सात हाथ" कहैत अफडि क' भोजन करय आ आ पसरि क' पडि रहय। एक बेर एकर गौंआ सूरत स' घुरलै त' बडा सिनेह स' गौंआ लए घडी किनने एलै।तहिया घडियो अलभ्य रहै। मुदा समस्या छलै जे दोसर गौंआ घ्डी देखतै कोना, ओ त' लिख लोढा_पढ पथ्थर छलए। गुजराती गौंआ एकरा बडे धुसलकै, रेवाडलकै, गंजनक त'र देलक।घडियो ने देलकै। एकरा बड्ड दुख भ्लै। पैंतीस बर्खक छलए जे कलम छूने छल। हमर बियाहक साल ओ मैट्रिक के परीक्षा दै बला छल।....एक गोटे के पुछलियनि_" ई की लिकहै छियै ?"त' कहलनि जे ई भागवतक मैथिली अनुवाद छिय्

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

वैदिकी हिंसा__हिंसा न भवति

हिन्दू धार्मिक कर्मकांड प्रतीक स' भरल छैक। ओना त' मूर्ति, अपना आप मे एक महान प्रतीक के अलावा आर की छियै ? धर्मक नाम पर जत्ते आ जेहन_जेहन अत्याचार भेलैये, ओत्ते त' राजनीति कि युध्धो स'
नंइ भेलैये। पूजा कि आराधनक अंतर्गत बलिदानक नग्न रूप आब हिन्दू कि इस्लामे टा मे बंचल छै। अपना मिथिला
मे जैं कि अधिक हिन्दू शाक्त छथि, तैं 'जोडा छागर' कबुलबाक हिस्सक कने बेसिये छैक। शारदीय नवरात्रा मे छाग मुंडक ढेर, पूजाक अवश्यम् आ आम दृष्य अछि। गाम गेल रही (गाम माने _"गाम नवहट्टा,परगन्ने कबखंड, थाना चर्राइन, जिला सहरसा पुराना भागलपुर) त' एकटा छोट सनक 'पाम कैम' स' ई दृष्य़ क़ॆ लेलंहु आ बेर्_बेर एकरा देख क' भेल जे ई हिंसाक कोनो विकल्प नंहि छै की ? धार्मिक कर्मकांड मे हिंसाके स्थान द' क' की हमरा सब हिंसा के महिमामंडित नंइ करैत आबि रहल छियै ? आजुक हिंसा, असहिष्णुता आ बेपीर जीवन मे हिंसाक एहन महिमामंडन करब कि आबो उचित छैक ? आइ ने काल्हि__विकल्प त' तकबेक हेतै । सेजत्ते जल्दी हुए, कोनो एहन बाट ताकब जरूरी छै जाहि स' धार्मिक कर्मकांड मे खलल नंइ होइ आ हिंसो रुकै।

सोमवार, 16 नवंबर 2009

जीबी त' की की ने देखी !

आब एकरा क्यो अक्कामे चक्का लगायब कहय कि आर किछु, मुदा श्रीनगर की नवहट्टा स' जँ क़्य़ॉ ई मेल करय...(फोन त' आब बड्ड आम भेल छै।) रोंइयां त' भुलकिते छै की ? किछुए दिनुका देरी छै, सब किछु एक्के क्लिक मे संभव भ' जेतै। मृत्यु स' जन्म आजीवन; सब किछु यैह सम्हारतै। से एखनो एकरा (कंपूटर बाबा के) सम्हारै लए कहबै त' ककरो स' नीक जेकाँ सम्हारि देत, अहाँ के पतो नँई लगैत।
साहित्य मे अपन कुल_खान्दानक वर्णन आ तत्जन्य नीक गंजन कैक बेर सुनैत लोक के देखने छियै। दोसर कने बढि_चढि क' अहाँक पुरखाक चर्चा_प्रशंसा करै त' बात बुझै मे अबै छै, मुदा अहाँक हाथ मे कलम अछि त' बस अपन कुल खान्दानक़ बडाइ करैत रहबै से पढत के ? मुदा, एखनंहु, जिनका जमिन्दारीक खुमारी नंहि टुटलनि अछि, हुनका लेल, 'लौस्ट ग्लोरी' मे जियैक अलावे रास्ते की छनि।एत्ते दिन मे क्यो ड्यौढीमे रहनिहार सरकार सब किछु तेहन नंइ क' सकलखिन जे दस लोक चिन्हैन। हुनको लए 'हमर बबाके हाथी, तैं सिक्कडि देखियौ !' एकर अलावे उपाये की ? तैं आब 'श्रीनगर ड्यौढी' स' बेसी हैपनिंग प्लेस, श्रीनगरक हाट_बज़ार कि बस्ती मे हेतै से ओहि इलाका के विषय मे लिखैवला के सतत ध्यान मे रखबाक चाहियै। लोक स' अपना के जोडै लए ड्यौढी स' त' निकलंहि पडत भाइ !अतिकाल भ' रहल अछि, सामान्यीकरण मे विलंब भेला स' सब किछु गडबडायल अछि; आ सैह रहत। तैं अपना सब के बिसरि क' सबके सुधि लियौ ने, सब मे अहूँ छी ने भाई ?

गुरुवार, 12 नवंबर 2009

लिखैक वेगरता

हमरा लगैये जे जेना नेता सब के भीड,मंच आ माइक के देखिते किछु सबसबाय लगैत छै, तहिना किछु लेखको होइ छनि। कहिया कत' दू_चारि टा रचनाक की चर्चा भेलनि, बस भ' गेला स्थापित । तहिया स' जँ कोनो साहित्यिक मंच नज़रि एलनि, कि कुर्सी हथियेबालय वृतोष्मि भेटता। पटना मे मुन्नक़िद पुस्तक मेला मे नामवर संगे आलोकध न्वा के बैसल देखि लागल जे लेखन आ साहित्यक राजनीति, दुनू दू छोरक चीज छैक, जे एक संगे भैये ने सकैत अछि। मैथिलीमे एखन तक अपन मांटिक़ उदारता, अयाचीवृत्तिक छिकार छैके। एखनो बिना विचारने_सिचारने, जे ई के छापत आ कि तहू स' बढि क' जे एकरा के पढत ? लोक लिखैये, लिखिते जारहल अछि।
हमरा जनैत पढैक वस्तु( कोन आ केहेन ?) भेटतै त' लोक पढबे करतै।
तैं कि आब लोक 'चमेली रानी' लिखय ?

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

भ्रष्टाचार आजुक सदाचार

यदि सत्य पूछी त' लालू बिहारक राजगद्दी पर बैसल त' संयोग स'___मुदाओकर एहन कैकटा निर्णय छैक जकर मारल बहुत दिन तक बिहारी लोक काँई_काँई करैत रहत।ओना ज' गनाब' लागी त' लालू कालक, आ लालूक कैलहा भ्रष्टाचार पर (ललुआके कोनो मुंहलगुआ भने लिखि दौ, नहि त' ओकरा कत' स' अवगति एलै किताब लिखैके ?) कैकटा ने 'बेस्ट्सेलर' लिखल जा सकैत अछि।
ओ भ्रष्ट_आचार के सही आचार बना देलकै। पकडायल त' जेलेके फाइभ स्टार होटल बना क', बाहुबली नेता सबके रास्ता साफ क' देलकै। अपन अनपढे नंइ, गंवार बहु के सोइरी आ भनसाघर स' खींच क' मुख्य मंत्री बना क' लोकतंत्रक विपर्ययके तत' ल' गेलै, जे आब मधू कोडाक' हज़ारों_लाखों करोड टाका भोजन क' जयबाक सनसनीखेज़ खबरि कन्नेको उत्सुकता नहि जगबैत छै। गणित कैल गेलैये जे ओकर प्रतिदिनक आय ढेढ करोड टाका छलै....महलमे रहै छल, देश_विदेश जा जा क' विपन्न आदिवासी_बनवासी सबहक टाका ल' क' छ्हर_महर करैत छल।तैं दू_दू ठाम, दू दू बेर लोक देख लेलकै_ने छोट _पैघ जाति स', ने धनिक_गरीब भेला स', ने पढल कि मूर्ख रहला स' किछु फर्क पडै छै। 'ईज़ी' मनी हाथ लगिते, ने कोनो आचार, ने कोनो विचार, आ ने कोनो संस्कार रहै छै__बस दूनू हाथे जत्ते हंसोथि सकी से हंसोथि ली, चाहे तकर बाद अस्पताल कि जेले मे कियै ने रह' पडै। यैह ललुओ केलक, आ सैह मधू कोडा एंड कंपनियों केलनि। भ्रष्टाचार के ललुआ__ लोकाचार कि सदाचार बना देलकै। सह्जें लोक ई जातिक बुद्धिक डर मानैत अछि ? वोट मंगै लए फेरयैह सब आयत, तखन मोन रहत ने ?