शनिवार, 21 नवंबर 2009

हमर विपरीत पद्धति

ओना अखज लोक सब ठाँ, कहैक माने जे सब समाज मे भेट जायत, मुदा मैथिल एक त' एहन कोनो मोंछक लडाइ मे पडबे ने करत, आ जँ बाबू पडि ग़ॆल त' हठ्ठे छोडबो ने करत। अपन सासुरक गप्प कहै छी, ओइ ठाम कहाँअ दू गोटा मे गौंआ लागल रहनि। घरो एके टोल मे रहनि।एक गौंआ त' पढि -लिखि क' शास्त्रीय आचार्य तक पढि गेल रहथिन आ बहुते स्मार्ट सूरत गुजरात मे पढौनी क' क' चिक्कन पाइ कमाइत रहथि। दोसर गौंआ के दू_चारि बिगहा धनहर खेत बंटाइ पर लागल रहनि।पहिलुका जमाना रहै।खेत उपजै।बंटाइदार बैमानी नंहि करै। लोक उदार छलैक ओहि ठाँमक। खत्ता_खुत्ती, डबरा_डुबरी, पोखरिं_झाँखडिक कमी रहबे ने करै। बागमती मेबाढि अबै । बाढि मे मांछ अबै।दोसर गौंआ एकटा कडची मे बंसी बना भरि दिन मांछमारे। सांझ तक तीमन जोगरक भ' जाइ।घर जाय आ 'मांछ भात_सात हाथ" कहैत अफडि क' भोजन करय आ आ पसरि क' पडि रहय। एक बेर एकर गौंआ सूरत स' घुरलै त' बडा सिनेह स' गौंआ लए घडी किनने एलै।तहिया घडियो अलभ्य रहै। मुदा समस्या छलै जे दोसर गौंआ घ्डी देखतै कोना, ओ त' लिख लोढा_पढ पथ्थर छलए। गुजराती गौंआ एकरा बडे धुसलकै, रेवाडलकै, गंजनक त'र देलक।घडियो ने देलकै। एकरा बड्ड दुख भ्लै। पैंतीस बर्खक छलए जे कलम छूने छल। हमर बियाहक साल ओ मैट्रिक के परीक्षा दै बला छल।....एक गोटे के पुछलियनि_" ई की लिकहै छियै ?"त' कहलनि जे ई भागवतक मैथिली अनुवाद छिय्

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