सोमवार, 31 अगस्त 2009

अनुत्तरित कैक टा प्रश्न

काल्हि सुभाषक कथा संग्रहक गप करै छलंहु । किताबहमारा भेट गेल अछि, मुदा जिनका(भाइ राजमोहनजीके) समर्पित चानि हुनका नहि पहुंचल र हनि। हम सुभाषक समर्पॅण भाइ साहेब के पढि क' सुनलियनि। 'घरदेखिया'क मुख पृष्ठ बनेबाक चर्चा छै, मोन पाडि प्रसन्न भेला भाइ साहेब।
हाले मे शाश्वती कोसी क्षेत्र नौहट्टा स' फिरली है । आब नितीश कुमारक काज देखार भ' रहल छनि । मुदा, शहरक काज हुए कि गामक, काजक ने गति अछि आ ने ओकर गुणवत्ते। ओना शाश्वतीक रिपोर्टिंग नीक लागल। ओहू स' नीक हुनकर खींचल कोसी क्षेत्रक फोटो लागल । पता नँइ कोसीक मारल, झमारल लोकक कोन गति हेतै...के सुधि लेतै ? की हमरा लोकनि सब साल अहिना अनिश्चिततामे, तोपक मुहाना पर भरि बरसात बैसल रहबै ? के कहत?
आ कि यैह, जे एत्ते_एत्ते लाखों_करोडों के खर्चमे क्यो माल नहि बनौने हेतै ! ई सब त' नेताक हंटलाक बाद ने पता चलै छै ? एखन ई के कहत ?

रविवार, 30 अगस्त 2009

काल्हि सुभाषक लघुकथा संग्रह 'बनैत_बिगडैत'के चर्र्चा भेल रहै। भाइ साहेब( राजमोहनझा) स' पट्ना मे भेल'सगर राति दीप जरय' आ राज़कमल पुण्य़ तिथि पर भेल आयोजनक गप भेलै । कोना मरलाक बाद कोनो लेखक के जेना मोन होइ छै लोक मनोनुकूल आ समयानुकूल ढारि क' लोक पेश क' दैत छैक । नँइ त' राजकमल आमार्क्स् वाद...? राज्नीति हुनकर प्रिय विषय नँइ छलनि। ज्नता हुनकर विचारे भीड होइत छैक, जकर ने कोनो विचार होइ छै आने कोनो व्यक्तित्वे।

शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

स्वागतम्, सु स्वागतम्

अपनेक स्वागत करैत हमरा अपार हर्ष भ' रहल अछि, आ एक तरह स' हम अपने सब पाठक_पाठिका के अपन वर्तमानमे ताक_झांक करबाक हकार द' रहल छी। आउ, अहि ब्लौगक माध्यम स' किछु अप्पन आकिछु आनक गप्प कैल जाय। जनिते छी जे मैथिल आ बूढ गप्प करै लए छछनल रहैत अछि, हम दुनू छी। मुदा ध्यान देबै, 'वादे_वादे जायते तत्व बोधः' सेहो कहल गेलैये। कहल गेलैक अछि जे __जँ केलेके पात पात मे पात,त्यों संतन के बात बात मे बात।'से गप हरदम गपे नँइ होइ छै । गप्पे गप मे अत्यंत सार्थक निष्कर्ष सेहो निकलै छैक आ भयावह स' भयावह घटनाक सूत्रपात सेहो होइत छैक। हमर इच्छा अछि जे अही बहाने हम अपन इष्ट_मित्र कि पठक लोकनि के अपन बात कहि सकियनि आ जँ संभव हुए त हुनकर प्रतिक्रियो जानि सकी। ई बात कथा लिखि क' नहि भ' सकैत अछि। किछु जँ नव लिखब कि करब; तकर सूचना त' देबे करबजे आनो जँ कोनो महत्वपूर्ण काज जँ कत्तौ हेतै त' अवश्ये से हमर चर्चाक विषय हेबे करत। साहित्य आ कला जगतक हलचल किंबा राजनीतिक बिपटइ जँ कत्तौ हेतै त' हमरा कोना क'ल पडत ? ओकर चटकार ल' क' चर्चा करब आ अपनंहु स' ओइ मादे अहांक विचार जनैक प्रयास करब। श्री गजेन्द्र ठाक़ुर ज़ॆ विदेह ई मैगज़िन बहार करै छथि से हमर प्रिय मित्र आ अनुजवत लेखक भाइ सुभाषचन्द्र यादवक लघुकथा संग्रह 'बनैत बिगडैत' प्रकाशित करबा बडका काज केलनि अछि।