शनिवार, 16 अप्रैल 2011

म्नुक्ख होइये चिडै.

अपन व्यक्तिगत दुख के जग-जाहिर करब बेकार ।...सुनि अठिलैहें लोगसब के अतिरिक्त किछु नंइ।
हमरा लगैत अछि जे साहित्यिक रूप स'जखन क्यो चर्चा मे नंइ आबि पबैत अछि तखन ओ
लेखक अपना स' श्रेष्ठ के गारि फझ्झति द'क' अपना के पैघ बुझैत अछि। तै मे ज' हुनका कत्तौ छपै-छपबै के
सुविधा होनि,कोनो धज्जी सनक मैगजिन होनि तखन त'हुनका जे मोन हेतनि से लिखता। अहिना छथि संपादक वरेण्य शरदेंदु शेख चौधरीजी । हुनकर मोनेजे हमरा जहिया स'अकादमी भेटल अछि तहिया स' हमर लिखनाइ बंद भगेल अछि । जखन
कि तकर बाद हमर दशाधिक कथा प्रकाशित भेल अछि।मुदा से हुनका नंइ सुझलनि। कोना
सुझतनि ? अहां आंखि पर पीरा चश्मा लगा क'देखबै त'दुनियां पांडु रोग स' पीडित बुझाइये पड्त। तहिना एक टा साहित्यिक रंगदार बिहरि स'बहरेला अछि अजित कुमार आज़ाद जी। लिखतथि-पढितथि त'से जथ-कथ,भरि
पटना घुमि-घुमि क'एकर बात ओकरा त'कोनो गुलछर्रा अनेरे उडबैत रहता,लोक के लडबैत,तरह-तरह के लांछन लगबैत समय गमेता।एखन फेस बुक पर ओ लिखै छथि जे हम, उषाकिरण जी आ भाई साहेब ( राजमोहन जी) मैथिली कथा के
हिंदी अनुवाद क' हिंदियो के लेखक सब मे अपन नाम करै लए चाहै छी। हम्रर मैथिली कथाक सब हिंदी अनुवाद मे"मैथिली कथा" शीर्षकेक संग छपल रहै छैक,से हुनका नंइ सुझै छनि । आंखि मे गेजड जं भ'जाय,त'कोना सुझत ? हमर एहन कथा "काल रात्रिश्च दारुणा" जुलाइ 2009 के वागर्थ पत्रिका मे छपल अछि, से
देखौत,किंबा हमर कोनो हिंदीक रचना देखा दौथ जाहि मे ई नंइ लिखल हुए जइमे मैथिलीक कथाक उल्लेख नंहि हुए त'मानि जेबनि ।बिना आधारक एहेनसब बात लिखब साहित्यिक रंगदारी नंइ त' आर की कहौतै?

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