शनिवार, 5 सितंबर 2009

मेरा गाँव.,मेरा देश्

ओ दिन बीत गेलै जहिया गाम('गाम माने__गाम नवहट्टा, थाना चर्राइन, परगन्ना कबखंड,
ज़िला_सहरसा पुराना भागलपुर !") जेबाक सोचिये क' उत्साहित भ' जाइ छलंहु। जखन कि गाम जायब अत्यंत कष्ट साध्य आ अर्थ साध्य काज छलै। पटना स' जायब त' साओन_भादव के उमडल नदिया, गंगा पार करू...रेल स' मानसी भेने कोपडिया आ बदला स्टेशनक बीच सात_आठ किलोमीटरक रोमैंटिक 'वाक'....फेर रेल...फेर सहरसा मे रेल बदलू...तकर बादक दस किलोमीटर...माने पंचगछिया स्टेशन स' नवहट्टाक पुनः (रोमैंटिक) पद_यात्रा ? रोमैंटिक त'
कत्तहु स' नंहि...स्थानाभावक कारणॆ ताहि दिन रोडे बाथरूमो छलैक किछु लोकक ! ओइ हेंकके मीलों तक झेलब...नीक कत्तौ लगै ? मुदा, जाइ _अबैमे तीन दिनुका ई कष्ट, असुविधा लोक, लोक स' भेंट क' क' भुलि जाइत रहै... हमहीं जाबे एत' पटने मे पढैत रही,परिवार नहि भेल रहै, सब तातील मे गाम जाइते टा रही...आब एत' पटना जंक्शन स' सात बजे भोर जँ इंटरसिटी स' लोक चलै त' एक बजे ओ सहरसा मे रहत आ तीन बजे साकेत में।गोया
कि चुनानचे ओकरा मोसकिलस' दस घंटा, हमरा सन सीनियर सिटिजन के मोस्किल स' सौ टा टाका खर्च हेतै...जे हमर वित्तक लोक अनायासे क' सकैत अछि...तैओ...गाम दिस हमर पैर कियैक ने उठैये। संभवतः स्नेहक जाहि सरोवर मे हम गाम जाइते जेनां बोहिया लगैत रही...से आब कत्त' पाबी...दैया कहाँ गये वो लोग....? तैं गाम जाइत नँइ नीक लगैत अछि। मुदा कहल गेलैये जे कनबाक मोन त' आंखिमे गडल काठी...साफ_साफ कहियौने जे एतुक्का ए.सी. इंटरनेट,डाक्टरी सुविधा गाम दिस डेग उठबै स' रोर्कैत अछि।गाँव आ शहरक खाधि पटलैये ? सुविधा के दृष्टियें बिहारक ज़िला मुख्यालयमे आ पटनामे बहुत अंतर छैक एखनंहु।

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