शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

अही लेल छलंहु हताश....?

शीर्षक के अगिला लाइन छै "त' हैये आबि गेल प्रकाश"। आब ई पांती के लेखक नाम नंइ पूछि बैसब । हुनकर नाम मैथिली साहित्य मे अति प्रसिध्ध,अति चर्चित आ अंत मे अति उपेक्षित रवींद्रनाथ ठाकुर छनि । आइ मैथिली के आठम अनुसूची मे सम्मिलित भेला स' बहुतो गोटा तर-माल चाभि रहला अछि...मुदा मैथिलीक ई सम्मान लए जँ' हम स्व.किरण-मधुप-सुमन के आ अइ सबहक आंखों-देखा-हाल कह्निहार अमरजी के स्मरण करै छी त' ओत्तहि रवींद्र-महेंद्र के सेहो स्मरण करहि टा पडत। महेंद्र त'अपन मैथिली सेवाक बिना
कोनो चर्च के अइ असार संसारके त्यागि चल जाइत रहला...रवींद्र भाइ छथि....अहां जँ' पूछब कत' छथि ? त' हम कहब जे दिल्ली मे। आब ई नंइ पूछि बैसब जे कोना छथि ? हुनका सं' भेंट भेना कैक दशक भेल । हय रे जयदेव बाबू ! रहितथि त' बगल मे बैसल लोकक कानमे कहने रहितथिन...." साकेतानंदो मूल रूप स' पुरैनियें के ने ....? मुदा बाबू दम छैक.... रवींद्रभाइक कैक टा अभूतपूर्व रचना छै, जकरा दरभंगा-पूर्णियाँक त्वंचाहंच सं' तोपल नंइ जा सकैत अछि। यैह त' छियै अक्षरक कमाल...साहित्यक जादू! आई ने गोलैसी..षड्यंत्र..ओझरी आदि-इत्यादि क' क' अहां दबा देबै...मुदा जं'रचना मे दम रहतै त' कत्ते दिन दबेबै आगि के?

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