गुरुवार, 10 सितंबर 2009
हम अपना के आलसी नँइ बूझै छी, क्यो आइ तक ई 'रीमार्को 'ने देलक।जखन कि बच्चे स' हमर सब क्रिया_कलाप के लोक देखैत आयल , नीक बेजाय,जे भेलै से कहैत आयल।मुदा पता नँइ आइ काल्हि गाम जायब दुर्ग बूझि पडैत अछि, जखन कि संचार क्रांतिक कारणे कहबे केलंहु जे आवागमन बहुत सुलभ भ' गेल छैक। मुदा शनैः_शनैः रेडिओ मे काज केला स' जे चुस्ती_फुर्ती हमर स्वभाव बनि गेल छल अछि, से वयस आ कोनो डेडलाइन पकडै के बेगरता बिनु बिझायल जा रहल अछि। त' की हमरा कोनो व्यस्तता तकबाक चाही ? हमर चाची जी एक टा फकडा कि लोकोक्ति जे कहियै, कहैत रहथिन जे__"मरैक सोचि क' खेती नँइ करी आ जीवी त' खाई की?" लिखैयो लेल हमरा अहिना अपना के जोर लगब' पडैत अछि। भ' सकैत अछि ई वयसक कारणे हुए; पहिनो त' किछु काज रहै जे करैमे हमरा आसकति लगैत रहै ! नँइ, हमरा अपन समय के सब स' सही उपयोगक उपाय सोच' पडत।
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