सोमवार, 15 मार्च 2010

ओस्तादी खिस्सा

सिंधियाक दरबार स' एना अपमानित भ' क'बाहर कैल गेलाक बाद उस्ताद हाफिज़ अली खाँ एक टा खिस्सा कहलखिन__" कोनो राजाक राज मे एक टा बाप_बेटा भिश्ती(पानि पट्बै बला)रहै छल जेकरा पारा स' सोना बनबैक लूरि अबै छलै। बाप के कतबो राजाक पुलिस मारलकै_पिटलकै नंहिये गछलकै जे ओकरा ईलूरि छै। मुदा बेटा राजाक प्रलोभन मे आबि जे आधा_छिधा लूरि छलै राजा के सिखा देलकै। ई सूनि ओकर बाप बड्ड दुखी भेलै जे अदौ स' परिवारक गुप्त बात के ओकर बेटा राजा के कहि देलकै। क्रोध मे आबि ओ भिश्ती अपन बेटा के तरुआरि स'काटि देलकै। राजाक सिपाही ओकरा पकडि लेल्कै, ओकरा पर बेटाक हत्याक मोकदमा चललै आ ओकरा मृत्यु दंड भेटलै। आब काल्हि ओकरा फांसी पडितै त' राति मे एक गोटा एकर काल कोठली मे एलै आ बड सेवा केलकै। पैर_हाथ_माथ मे तेल__कूड लगा क' कहलकै जे आब काल्हि त' ओकरा फांसी हेबे करतै, तैं सोन बनबैक कला ओकरा बता दै। भिश्ती, बिना कोनो बहाना के आदि स' अंत तक
सोना बनेबाक तरीका बता देलकै। दोसर दिन राजा दरबार मे भिश्ती स' पुछलकै अहां हमरा राति चिन्हलंहु नंइ ? राति त' अहां सब बता देलंहु ?" भिश्ती जबाब देलकै जे राति अहां राजा नंइ छात्र जेकां विनम्र रही तैं बता देलंहु। कोनो शिक्षा बिना विनम्र बनने न
ंहि भेटि सकैत अछि।"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें