आब एकरा क्यो अक्कामे चक्का लगायब कहय कि आर किछु, मुदा श्रीनगर की नवहट्टा स' जँ क़्य़ॉ ई मेल करय...(फोन त' आब बड्ड आम भेल छै।) रोंइयां त' भुलकिते छै की ? किछुए दिनुका देरी छै, सब किछु एक्के क्लिक मे संभव भ' जेतै। मृत्यु स' जन्म आजीवन; सब किछु यैह सम्हारतै। से एखनो एकरा (कंपूटर बाबा के) सम्हारै लए कहबै त' ककरो स' नीक जेकाँ सम्हारि देत, अहाँ के पतो नँई लगैत।
साहित्य मे अपन कुल_खान्दानक वर्णन आ तत्जन्य नीक गंजन कैक बेर सुनैत लोक के देखने छियै। दोसर कने बढि_चढि क' अहाँक पुरखाक चर्चा_प्रशंसा करै त' बात बुझै मे अबै छै, मुदा अहाँक हाथ मे कलम अछि त' बस अपन कुल खान्दानक़ बडाइ करैत रहबै से पढत के ? मुदा, एखनंहु, जिनका जमिन्दारीक खुमारी नंहि टुटलनि अछि, हुनका लेल, 'लौस्ट ग्लोरी' मे जियैक अलावे रास्ते की छनि।एत्ते दिन मे क्यो ड्यौढीमे रहनिहार सरकार सब किछु तेहन नंइ क' सकलखिन जे दस लोक चिन्हैन। हुनको लए 'हमर बबाके हाथी, तैं सिक्कडि देखियौ !' एकर अलावे उपाये की ? तैं आब 'श्रीनगर ड्यौढी' स' बेसी हैपनिंग प्लेस, श्रीनगरक हाट_बज़ार कि बस्ती मे हेतै से ओहि इलाका के विषय मे लिखैवला के सतत ध्यान मे रखबाक चाहियै। लोक स' अपना के जोडै लए ड्यौढी स' त' निकलंहि पडत भाइ !अतिकाल भ' रहल अछि, सामान्यीकरण मे विलंब भेला स' सब किछु गडबडायल अछि; आ सैह रहत। तैं अपना सब के बिसरि क' सबके सुधि लियौ ने, सब मे अहूँ छी ने भाई ?
सोमवार, 16 नवंबर 2009
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