गुरुवार, 12 नवंबर 2009

लिखैक वेगरता

हमरा लगैये जे जेना नेता सब के भीड,मंच आ माइक के देखिते किछु सबसबाय लगैत छै, तहिना किछु लेखको होइ छनि। कहिया कत' दू_चारि टा रचनाक की चर्चा भेलनि, बस भ' गेला स्थापित । तहिया स' जँ कोनो साहित्यिक मंच नज़रि एलनि, कि कुर्सी हथियेबालय वृतोष्मि भेटता। पटना मे मुन्नक़िद पुस्तक मेला मे नामवर संगे आलोकध न्वा के बैसल देखि लागल जे लेखन आ साहित्यक राजनीति, दुनू दू छोरक चीज छैक, जे एक संगे भैये ने सकैत अछि। मैथिलीमे एखन तक अपन मांटिक़ उदारता, अयाचीवृत्तिक छिकार छैके। एखनो बिना विचारने_सिचारने, जे ई के छापत आ कि तहू स' बढि क' जे एकरा के पढत ? लोक लिखैये, लिखिते जारहल अछि।
हमरा जनैत पढैक वस्तु( कोन आ केहेन ?) भेटतै त' लोक पढबे करतै।
तैं कि आब लोक 'चमेली रानी' लिखय ?

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